Learn about ISKON in hindi. Read iskon books in Hindi. How to join ISKON? आज मैं आपको बताएगें इस्कॉन क्या है ? इसकी स्थापना कब, कहाँ और किसके की? इस्कॉन क्या करती है? इस्कॉन कैसे ज्वाइन करें?
इस आर्टिकल के माध्यम से इस्कॉन (ISKON) के संबंध में पूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया गया है|
इस्कॉन क्या है (what is iskcon)?
ISKCON stand for International society for Krishna consciousness.
यह एक अंतरराष्ट्रीय संघ है जो पूरे विश्व में भगवान कृष्ण-भक्ति के प्रचार- प्रसार करती है|
सन् 1966 ई. मे कृष्णकृपामूर्ति श्री श्रीमद् ए. सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी ने इस्कॉन की स्थापना न्यूयॉर्क में की।
श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी
प्रभुपाद जी का जन्म 1896 ईसवी में भारत के कोलकाता नगर में हुआ था ।अपने गुरु महाराज श्रीला भक्तिसिद्धांता सरस्वती गोस्वामी से सन 1933 ईस्वी में प्रयाग (इलाहाबाद) में विधिवत दीक्षा प्राप्त की। अपनी प्रथम भेंट में ही श्रीला भक्तिसिद्धांता सरस्वती गोस्वामी जी ने श्रीला प्रभुपाद जी से निवेदन किया था कि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान का प्रसार करें।
प्रभुपाद जी ने अपने गुरु के आज्ञा पालन करने के लिए न्यूयॉर्क अमेरिका चले गए ।जब श्रीला प्रभुपाद जी एक मालवाहक जलयान द्वारा प्रथम बार न्यूयॉर्क नगर में आए तो उनके पास एक पैसा भी नहीं था।
अत्यंत कठिनाई भरे लगभग 1 वर्ष बाद जुलाई 1966 ईस्वी में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ (इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉन्शसनेस iskcon) स्थापना की । लगभग 18 महीने में प्रभुपाद जी ने अपनी कुशल मार्ग निर्देशन से संघ को विश्वभर में 100 से अधिक आश्रम, विद्यालयों, मंदिरों ,संस्थानों और कृषि समुदायों का वृहद संगठन बना दिया।
आज पूरे विश्व में प्रभुपाद जी ने अंटार्कटिका को छोड़कर सभी छह महाद्वीपों में 600 से ज्यादा इस्कॉन मंदिर (Iskcon temple) की स्थापना उनके शिष्यों और अनुयायियों द्वारा किया गया है श्रीला प्रभुपाद जी ने 12 वर्षों में अपनी बृहद अवस्था की चिंता न करते हुए विश्व के 6 महाद्वीप में 14 परिक्रमाए की।
इस्कॉन क्या करती है (what does Iskcon do)?
जब इस्कॉन की बात की जाए तो यह जान लेना अति आवश्यक हो जाती है कि इस्कॉन क्या करती हैं और इसको स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य क्या था?
प्रभुपाद जी पूरी दुनिया को यह बताना चाहते हैं जो लगभग 5000 साल पहले भगवान कृष्ण महाभारत के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को बताए थे भगवान कृष्ण द्वारा बताई गई दिव्य ज्ञान को इस्कॉन पूरी दुनिया में फैला रहा है|
आज अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन और भारत जैसे अनेक देशों के इस्कॉन से जुड़े हजारों लाखों कृष्णभावना भावित भक्तों ने पूरी दुनिया में इस दिव्य ज्ञान को प्रसार कर रहे हैं|
यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन को पूरे विश्व में फैलाना और लोगों को भक्ति के मार्ग पर लाना श्रीला प्रभुपाद जी का सपना है यही इस्कॉन के मुख्य उद्देश्य भी है|
इस्कॉन से जुड़े सारे कृष्ण भक्त भगवान कृष्ण के सच्ची सेवा करते हैं और चैतन्य प्रभु के द्वारा बताई गई हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे महामंत्र का जप करते हैं| आज देखा जा रहा है कि पूरी दुनिया में जगह -जगह पर हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा कृष्ण भक्तों ने संकीर्तन करते हैं और संकीर्तन करते हुए रथयात्रा भी निकालते हैं|
वैदिक शास्त्रों के अनुसार परम परमेश्वर भगवान श्री कृष्ण हैं| वे सभी युगों में भिन्न-भिन्न औतार लेकर हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दिए हैं। दोस्तों, आज भी उनकी मुख् से बोली गई दिव्य वाणी श्रीमद्भागवत गीता के रूप में मौजूद है।
इस्कॉन के कृष्ण भक्त लोग श्रीला प्रभुपाद जी के द्वारा लिखी गई श्रीमद्भागवत गीता और भागवतम् पढ़कर यह दिव्य ज्ञान को अर्जित करके भगवान कृष्ण के भक्ति में लीन रहते हैं।
इस्कॉन कैसे ज्वाइन करें (How is joined the Iskcon)?
दोस्तों प्रत्येक मनुष्य शांति और आनंद की खोज कर रहा है किंतु कृष्ण के संबंध में जो आनंद मिलता है उसकी तुलना में अन्य सब नीरस हो जाता है l यदि हम केवल कृष्ण की ओर मुड़े तो हम जो भी आनंद के लिए लालायित हैं उसे आखिर प्राप्त करेंगे ।
कृष्ण के व्यक्तित्व एवं उनकी लीलाओं के विषय में जानने और आनंद के अपार भरा भंडार को प्राप्त करने के लिए आपको बस श्रीमद्भागवत गीता पढ़नी है और भगवान के दर्शन के लिए इस्कॉन मंदिर जाना है, प्रसाद ग्रहण करना है, इस तरह धीरे-धीरे आपकी चेतना अर्थात पवित्र आत्मा आध्यात्मिक हो जाएगा, आप पूर्णत: इस्कॉन से जुड़ जाएंगे।
श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी के द्वारा प्रमाणिक तथ्य
श्री श्रीला प्रभुपाद जी, मृत्यु के बाद आत्मा की अद्भुत यात्रा, एक शरीर से दूसरे शरीर की आत्मा की यात्रा के चौंकाने वाले सबूत प्रस्तुत करते हैं और बताते हैं कि हम किस प्रकार मृत्यु के चक्र को समाप्त करके भगवान के परमधाम तक पहुंच सकते हैं|
पुरी दुनिया में कितनी भी यात्रा में धन से आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती । फिर भी यह दुर्लभ, सर्वाधिक सत्यवान तथा सर्वाधिक वांछनीय चीज है और यह अमीर तथा गरीब दोनों के लिए समान रूप से उपलब्ध है
क्या आप इस उपहार को अपने जीवन में चाहते हैं ? यहां इससे प्राप्त करने के आवश्यक क्रमिक पद्धति दी गई है । एक के बाद एक कदम आगे बढ़े और आप पाएंगे कि आपने अनुपम आहार प्राप्त किया है , जो है भौतिक कष्टों से स्थाई मुक्ति ।
श्रीमद्भागवत गीता यथारूप (Srimad Bhagwatgita Yatharup)
श्रीमद्भागवत गीता एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमें भगवान कृष्ण के द्वारा वे सारी दिव्य ज्ञान का वर्णन किया गया है जो भगवान कृष्ण अपने भक्त और मित्र अर्जुन को लगभग 5000 वर्ष पहले महाभारत के युद्ध के कुरुक्षेत्र में दिए थे ।
भागवत गीता में कुल 700 श्लोक हैं। यह सभी श्लोक संस्कृत भाषा में हैं। इसे 18 अध्याय में बांटा गया है । प्रभुपाद जी के द्वारा लिखी गई श्रीमद्भागवत गीता पूर्णत: तथ्यों पर आधारित है। सभी श्लोकों को प्रभुपाद जी ने पूर्ण उदाहरण के साथ समझाने का पूर्ण प्रयास किए हैं । इनके द्वारा लिखी गई भागवत गीता और अन्य पुस्तकें 50 से अधिक भाषा में प्रकाशित हो रही है ।
आज पूरी दुनिया इन पुस्तकों को पढ़कर ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। इस ज्ञान के द्वारा अपने आप को पहचान कर अपनी पवित्र आत्मा को आध्यात्मिक बना रहे हैं जो शाश्वत है, और भगवान के अंश है।इस तरह अपनी पवित्र आत्मा को आध्यात्मिक बनाकर, कृष्ण के भक्ति द्वारा परम आनंद को प्राप्त कर रहे हैं।
हरे कृष्णा,
Balwant Kumar
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